HISTORY UGNA MAHADEV

इ कहानी 1352-1448 बिचक अछि जाही में महा कवी विद्यापति के जन्म बिस्फी गाम में भेलानी और ओ मैथिलीक बहुत पैघ कवी भेला जिनका कबी कोकिल के उपाधि देल गेलनी और ओ महादेव के बहुत पैघ भक्त सेहो छला
कवी विद्यापतिक रचना एतेक प्रभाबी होईत छलनी जे जखन ओ आपण रचना के गबैत छला त कैलाश पर बईसल भगबान महादेव प्रशन्न भ जाईत छला और हरदम हुनक रचना सुनबाक इच्छा राखैत छला, ई इच्छा एतेक बड़ी गेलनि जे ओ एक दिन माता पार्वती के कहलखिन " हे देवी सुनु, हम मृत्युलोक जा रहल छी कवी विद्यापतिक रचना हमरा बहुत नीक लागैत अछि और हमर मोन भ रहल अछि जे हम हुनका संगे रही क' हुनक रचना सुनी, त अहां अही ठाम कैलाश में रहू और हम जा रहल छी मृत्युलो" और रचना सुनबाक लेल धरती पर आबी गेला, और विद्यापति के ओतै नौकर बनी क उगना के नाम स काज कर लागला ओ विद्यापतिक चाकरी में लागी गेला ओ हुनकर सब काज करथिन हुनका पूजक लेल फूल और बेलपत्र तोरी क आनैथ बरद के चरबैथ सब चाकरी करैत और राइत में सुत्बा काल में हुनकर पैर सेहो दबबैथ (धन्य ओ विद्यापति जिनक पैर देवक देव महादेव दबबैथ) अहि प्रकारे जखन बहुत दीन बीत गेल, ओम्हर माता पार्बती बहुत चिंतित भ गेली हुनका लगलैन जे आब महादेब मृत्यु लोक स वापस नै एता, और ओ हुनका बापस अनबाक प्रयास में लैग गेली, ओ क्रोध के आदेश देलखिन जे आहा जाऊ और विद्यापतिक पत्नी सुधीरा में प्रवेश क जाऊ जाही स उगना द्वारा कोनो गलत काज भेला पर सुधीरा हुनका मारी क भगा देती, लेकिन माता पार्वती के इ प्रयाश सफल नै भेलैन तखन ओ दोसर प्रयाश केलि ओ प्याश के कबी विद्यापतिक ऊपर तखन सवार क देलखिन जखन ओ एकटा जंगल के रास्ता स उगना संगे राजा शिव शिंह के ओतै जारहल छला ओ घोर जंगल छलाई ओत दूर दूर तक ज'लक कोनो आस नै छलाई और ओही बिच में कवी विद्यापति प्याश स तरपअ लागला "रे उगना जल्दी सँ पाइन ला रउ नै ता हम मइर जेबउ बर जोर स प्यास लागी गेलौ" कहैत जमीन पर ओन्घ्रे लगला, आब उगना की करता ओ परेशान भ गेला एम्हर उम्हर पाइन के तलाश में भट्क' लगला हुनका पाइन नै भेटलैन, तखन ओ एकटा गाछक पाछू में नुका गेला और अपण असली रूप धारण क' अपन जटा सँ गंगाजल निकालला' और फेर उगनाक रूप धारण क विद्यापति के ज'ल देलखिन, विद्यापति जल पिबैते देरी चौक गेला ओ उगना स पूछ' लागला " रे उगना इ त गंगाजल छऊ, बता एता गंगाजल कत स अन्लाए" आब उगना की करता ओ कतबो बहाना बनेला लेकिन हुनकर एको नै चलल, ओ कि करता हुनका विबश भ अपन रूप देखाब' परलानी और ओ अपन असली रूपक दर्शन कवी विद्यापति के देलखिन, विद्यापति महादेवक अशली रूपक दर्शन करिते देरी चकित रही गेला और हुनक चरण पर खसी क हुनका स छमाँ माँग' लागला "प्रभु हमरा छमाँ करू हम अहां के चिन्ह नै सकलौं हमरा स पहुत पैघ अपराध भ गेल" तखन हुनका उठाबैत महादेव कहलखिन "हम आहा संगे एखन और रहब, लेकिन हमर एकता शर्त अछि जे आहा इ बात केकरो स नै कहबनी और जखने आहा इ बात केकरो लंग बाजब ओही छन हम अहाँ लंग स चली जायब" विद्यापति शर्त के मंजूर करैत और दुनु गोटे राजदरबार के तरफ चली गेला, माता पार्बती के इहो प्रयाश सफल नै भेलैन. तखन एक दिन उगन के बेलपत्र लावय में कनिक देरी भ गेलनि ताहि पर सुधीरा एतेक क्रोधित भ गेली कि ओ चुल्हा में जरैत एकटा लकड़ी निकली क हुनका मारबाक लेल उठेल्खिन "सर'धुआ आय तोरा नै छोर्बाऊ तू बड शैतान भ गेला हन हमर बच्चा सब भूख स बिलाय्प रहल अछि और तू एतेक देर स बेलपत्र ल' क' एलै हन" कहैत हुनका दिश बढ़लखिन, तखन विद्यापति स देखल नै गेलन्हि और ओ बजला "हे हे इ की करैत छि इ त साक्छात महादेव छैथ" और एतबे कहिते महादेव गायब भ गेलखिन, फेर विद्यापति हुनका जंगले जंगले तक' लगला और "उगना रे मोर कतै गेला" गबैत रहला लेकिन उगना फेर हुनका नै भेटलखिन, और ओ अपन प्राण तियैग देलखिन I



ओ स्थान जाहि ठाम देवक देव महादेव कवी-कोकिल विद्यापति के अपन अशली रूपक दर्शन देने छलखिन ओही ठाम "बाबा उगना" के मंदिर छैन और ओहिमे शिवलिंग जे छाई से अंकुरित छाई, जेकर कहानी किछु एहन, छाई जे एक बेर गामक एक बुजुर्ग ब्यक्ति के महादेव सपना देलखिन की "हम एकता गाछक जैर में छी" और ओतै बहुत पैघ जंगल छलई तखन गामक लोक सब तैयार भ क ओय ठाम गेला और पहुँच क जखन खुदाई केला त देखलखिन की एकटा बहुत सुन्दर शिवलिंग छाई, सब गेटे बहुत खुश भेला और विचार भेलय की हिनका बस्ती पर ल चलू ओय ठाम मंदिर बना क हिनक स्थापना करब और हुनका उठेबाक लेल जखने हाथ लगेलखिन की ओ फेर स जमीन के भीतर चली गेला, फेर स कोरल गेल और हुनका निकलवाक प्रयाश कैल गेलई, इ प्रयाश दू तीन बेर कैल गेल मुदा सब बेर ओ जमीन के भीतर चली जायत छला, तखन सब गोटे के बुझबा में एलईन जे इ अहि ठाम रहता और अय ठाम स नै जेता, तखन ओही ठाम साफ सफाए कैल गेल और तत्काल मंडप बनैल गेल और बाद में मंदिरक निर्माण सुरु भेल जे १९३२ में जा क तैयार भेल और अहि मंदिरक परिसर में ओ अस्थान सेहो अछि जाहि ठाम महादेव अपना जटा स गंगाजल निकलने छला और आय ओ इनारक रूप में अछि जेकरा "च्न्द्रकुप" के नाम स जानल जैत छाई और एखनो ओकर जल शुद्ध गंगाजल छाई, जे लैब टेस्टेड छाई !
दरभंगा के एकटा बहुत प्रशिद्ध डॉक्टर अपना मेडिकल लैब में एकर टेस्ट केने छलखिन और ओ अय बात के सुचना ग्रामीण सब के देलखिन जे अय में पूरा गंगाजल के तत्व बिद्यमान अछि, और इ दोसर रुपे सेहो टेस्टेड छाई, अय जल के यदि अहां बोतल में राखि देबय ता इ ख़राब नै होइत छाई
इ स्थान मधुबनी जिलाक भवानी पुर गाम में स्थित अछि
एत' सब गेटे एकबेर जरुर आबी, एही स्थानक कुनु तरहक जानकारिक लेल अहां हमरा स संपर्क क सकैत छि
"जय बाबा उग्रनाथ"

VIDYAPATI BIOGRAPHY

idyapati lived in the second half of fourteenth century. The exact years are not known, but the Tithi was Kartik Dhawal (bright half) Trayodashi. The ancestors belonged to the Gadha Bisaphi family of Maithil Brahmins of Kashyap Gotra. The ancestry is traced as Vishnu Thakur –> Haraditya –> Karmaditya –> Devaditya –>  Dhireshwara->  Jayadatta -> Ganpati -> Vidyapati. Devaditya had seven sons. The eldest Vireshwar was the Minister for peace and War under the Karnata King of Mithila Mithila, Maharaja Sakrasingha. He was the author of  Dharmshastra treatise Dasakarmapaddhati. His son Chandeshwar Thakur was a great scholar of Politics, Astronomy and Dharmshastra.
             The second son of Devaditya, Ganeshwar Thakur was the author of Sugatisopana and Gangapattalaka.  His eldest son, Ramadatta, wrote Dasakarmapaddhati and Mahadaanpaddhati and the younger son, Govindadatta was the author of Govindmanasollas, a devotional work on Vishnu.  Both the sons of Ganeshwar died issueless.
            The third son of Devaditya, Dhireshwar had two sons: Jayadatta and Kirtti. Jayadatta also had two sons : Gauripati and Ganapati. This Ganapati was the father of famous Vidyapati.
             The fourth son of Devaditya was Jateswara the Bhandarika (store keeper); the fifth was Haradatta the Sthanantarika (Transfer Officer); the sixth was Lakshmidatta the Sandhivigrahika ( Minister for peace and war); and lastly the seventh was (Rajaballava)  a courtier. They all seem to have died childless.
             The father of Vidyapati, Ganpati married the daughter of Srikara  of the family of Buddhabalae named Ganga Devi. His ancestors held high posts in the courts of the Kings.  So did Vidyapati Thakur. It will not be out of place to mention that the “paddhatis” of Vireshwar and Ramadatta are followed in Mithila even today and the Nibandhas of Chandeshwar still form the basis of the social and religious life of Mithila.
            He was very close to the queen “Lakhima” of Raja Shiva Singh, and finds mention in so many of his poems.

WORKS OF VIDYAPATI
 In Sanskrit:
  1. Saivasarvasvarasara  - Digest on worship of Shiva
  2. Gangavakyavali – On worshipping Ganga
  3. Durgavhakti Tarangini – On worshipping Durga
  4. Danavakyavali – On performing various kinds of Dana
  5. Gayapattalaka – On performing various rites in Gaya
  6. Varsakrittya – On the performance of various customs, ceremonies and rites by house holders throughout the year
  7. Likhanavali – On letter writing
  8. Purushapariksha – On judging a person
  9. Vibhagasara – On right way of partitioning one’s inheritance
In Abhatta:
  1. Kirttilata – It relates the regaining of the kingdom of Mithila from the Muslim usurper Aslan by Maharajkumars Veersimha and Kirttisimha.
  1. Kirttipataka – Also an eulogy in praise of the then Maharaja, Maharajkumars
Maithili Drama :
  1. Gorakshavijaya – Relates to the well known story of Matsyendranatha and Gorakshanatha
  2. Manimanjari-natika
Maithili Lyrics :
            Dr. Subhadra Jha’s edition published from Varanasi is till date the best collection of Vidyapati’s poems. Various good editions of his poems have been brought out but none is as comprehensive as the one brought out by Amulyacharan Vidyabhaum and Khagendranatha Mitra. It is a revised edition of Nagendranath’s important collection of Vidyapati’s poems and has been published by Sharatkumar Mitra.
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Influence of Vidyapati in Bengal 
The influence of Vidyapati in Bengal was so intense that for a period of time he was considered a poet of Bengali literature. His songs were mingled with those of Chandi Dasa who spread the Vaishnavism cult. Romesh Chandra Datta goes on to prove that there is no chance of their having met and Chandi Dasa came much later and had immense influence of Vidyapati especially in the Krsnakirttana .
The following quote from Grierson (Maithili Chrestomathy,, p34)
And now a curious circumstance arose, unparalleled I believe in the history of literature..(His songs) were twisted and contorted, lengthened and curtailed, in the procrustean bed of the Bengali language and metre into a kind of bastard language neither Bengali nor Maithili. But this was not all. A host of imitators sprang up notably one Basant Roy of Jessore, who wrote, under the name of Vidyapati in this bastard language, songs which in their form bore a considerable resemblance to the matter of our poet, but which almost entirely wanted the polish and felicity of expression of the old master-singer … (These imitation songs known as “Brajbuli” songs) became gradually more popular amongst the Bengali people than the real songs of Vidyapati.”

History of Brajbuli Literatue by Dr. Sukumar Sen gives a complete account of “Brajbuli” poets. It is interesting to note that Ravindra Nath Tagore was so influenced by Vidyapati that he wrote (1884) a number of poems in the guise of Bhanu-Singh and named it Bhanu-Singh-Thakurera  Padavali.
 Influence of Vidyapati in Assam
             It was Sankara Deva who introduced Brajbuli (Maithili) to Assam.  Vidyapati was considered a Vaisnava singer. Shankar Deva found a great instrument in Brajbuli or Maithili in spreading Vaisnavism and introduced it in Assam.
In the history of Assamese, Brajbuli occupies an important place; it was able to lay the foundations of Assemese Literature. The Department of Histororical Antiquities, Government of Assam, Gauhati first published this literature. 
Influence of Vidyapati in Orissa
        Bengal acted as the source of spreading Maithili to Orissa in the first half of 16th century. The earliest known Brajbuli poem in Orissaby Ramanand Rai, the famous poet and dramatist, is dedicated to Pratap Rudra Deva (1504-1532). Dr. Sukumar Sen has given a vivid description of the meeting of Ramanad with Shri Chaitanya Dev (1511-12). The master asked Ramanand to explain to him the aim of Vaisnava religion and philosophy. Ramanand went on explaining without ant success. Then he asked the master if he could recite a few poems. The influence was magical and the master was greatly moved  on hearing only a few lines
        Other Orissa poets in the 16th century are Champati Rai, Maharaja Prataprudra Deva, Madhavi Dasi, Kanhu Dasa and Murari. In the next century the names of Rai Damodara Das, Chanda Kavi and Yadupati Dasa are worth mentioning.
Oriya Brajbuli is still unexplored.

Influence of Vidyapati in Nepal
Due to close proximity Nepal could not escape the influence of Maithili. Though the people of tarai better known as Madhesias (Madhya Desi ) speak Maithili, historically nothing of importance is found. However the Malla Kings of Nepal themselves wrote in imitation of Vidyapati and induced many poets and musicians to do the same.
Recently the Madhesias have been accepted as the citizen of Nepal and this is a positive sign of Maithili getting its rightful place in the Kingdom of Nepal. The poets and writers are quite active in the tarai region.